जलते बुझते दिये सा लग रहा हूँ मैं अंदर ही अंदर भभक रहा हूँ किसी और की ज़रूरत ही क्या मुझे अब मैं ठहरा खुदगर्ज खुद ही खुद को ठग रहा हूँ ये कैसी आग है जो जलती नहीं बुझकर… Continue Reading
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