जिन आखों से आज आसुओं की बुँदे टपक रही हैं, कभी उन में से दरिया -ए- नूर बरसा करता था, ये जो चारों और बंजर सा जमीन देख रहे हो ना कभी यहां पर भी मुस्कुराहट का सैलाब हुआ करता… Continue Reading
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