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कहर कोरोना, विनती मेरे मालिक तुम मेहर करो ना

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हे ईश्वर आन पड़ा है कहर कोरोना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना

 

भूल गए थे हम हस्ती तुम्हारी
मालिक संभाल ले अब कश्ती हमारी
अपने बच्चों को अब और सीख मत दो ना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना

 

प्रकृति की वेदना हम क्यों ना सुन पाए
आज अपनों की चीखे हमें यह बताएं
बहुत बड़ा ऋण प्रकृति का है चुकाना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना

 

रूह कांप जाती है आज ऐसी घड़ी है
फिर भी तेरी रहमत की आशा सबसे बड़ी है
ऐ विधाता विधि का यह लेख बदल दो ना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना

 

मोल क्या है अपनों का आज तूने सिखाया
घर बंद कर दिल के दरवाजों को खुलवाया
मकसद तेरा था हम सोते हुए को जगाना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना

 

आज हिंदू मुस्लिम सिख हो या इसाई
सबकी आंखें करुणा से हैं भर आई
कितना मुश्किल है अपनों से दूर जाना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना

 

नतमस्तक हम देश के उन रख वालों के
खुद को भूल जो लगे हैं लड़ने महामारी से
इनके नाम जले दियो को मत बुझाना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना

 

गाते पंछी, निर्मल नदिया वायु बिन जहर
बरसों के बाद आज देखी ऐसी सहर
साफ खुला आसमाँ कहे अब तो समझोना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करोना

 

मानते हम हुई भूल हमसे बड़ी है
माफ बच्चों को करना जिम्मेदारी तेरी है
हाथ जोड़े इन बेबस बच्चों को क्षमा दो ना
विनती मेरे मालिक तुम महर करोना

 

हे ईश्वर आन पड़ा है कहर कोरोना
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करो ना

 

CA CS Nisha Patel

 


ये भी जरूर पढ़िए – रण: धेर्य का कोरोना महामारी कविता

 

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